बाबा कुशेश्वर नाथ मंदिर
पौराणिक इतिहास को देखें तो इस पावन स्थान के बारे में दो कथाएं प्रचलित है | इस इतिहास को पलट कर देखें तो कुशेश्वरस्थान का जिक्र पुराणों में मिलता है. जब त्रेतायुग का दौर खत्म होने को था तो महाराज श्रीराम के दो पुत्र हुए एक लव और दूसरा कुश | बिहार की धरती मिथिलांचल माता सीता के इन दो पुत्रों का ननिहाल है | कहा जाता है कि महाराज कुश ने एक बार अपने ननिहाल जाते हुए इस स्थान पर पड़ाव डाले थे और यहीं पर महादेव शिव और अपने पिता श्रीराम की आराधना की थी | इसलिए यह स्थान कुश के ईश्वर का स्थान अथार्थ कुशेश्वरस्थान कहलाया | हालांकि यह सिर्फ मान्यता है और दंतकंथाओं में शामिल है |
महाराज कुशध्वज की नगरी कुशेश्वरस्थान
पुराणों में कुशेश्वरस्थान का जिक्र देवी अहिल्या के साथ भी जुड़ा मिलता है | महर्षि विश्वामित्र के साथ मिथिला जाते हुए श्रीराम जब इस मार्ग से गुजरे तब उन्होंने ही गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को श्राप मुक्त किये थे | दूसरा जिक्र जिस ऐतिहासिक विभूति का होता है, वह हैं राजा कुशध्वज, इन्हें सीरध्वज भी कहा जाता है | कुशध्वज कोई और नहीं, बल्कि देवी सीता के चाचा और मांडवी-श्रुतकीर्ति के पिता थे | इस स्थान पर उनकी राजधानी हुआ करती थी. इसलिए इसे कुशेश्वरस्थान कहते हैं |
शिवलिंग की उत्पति जमीन खुदाई से
इस नगरी का निर्माण राजा कुशध्वज ने ही कराया था. यहां स्थित प्रसिद्ध बाबा कुशेश्वरस्थान मंदिर की प्राचीनता इस बात की ओर इशारा भी करती है. हजारों साल पहले यहां कुश का घना जंगल था। इसके साक्ष्य अभी भी यहां दिखाई पड़ते हैं। उस जंगल में आस पास के गांवों के चरवाहे गाय चराने आते थे। उन्हीं गायों में से एक बाछी प्रतिदिन एक निश्चित स्थान पर आकर अपना दूध गिराकर चली जाती थी। इसकी भनक गाय चराने के लिए आनेवाले चरवाहों को लगी। खागा हजारी नामक एक चरवाहा जो संत प्रवृत्ति के थे, उसने बाछी के द्वारा दिए जाने वाले दूध के स्थान पर खुदाई की तो शिवलिंग मिला। इसकी भनक जंगल में आग की तरह फैल गई। बाद में भगवान शिव ने खगा हजारी को स्वप्न दिये कि यहां मंदिर बना कर पूजा अर्चना शुरू करो।
मंदिर का जीर्णोद्धार
बताया जाता है कि खागा हजारी ने उक्त स्थान पर फूस के मंदिर बनाकर पूजा अर्चना शुरू किये थे । नरहन सकरपुरा ड्योढ़ी के रानी कलावती ने यहां 18 वीं शताब्दी में भव्य मंदिर का निर्माण कराया। फिर कलकत्ता के बिड़ला ट्रस्ट द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार 1970 के दशक में किया गया। स्थानीय बाजार के नवयुवक संघ ने 1990 के दशक में मंदिर के देखभाल शुरू की। न्यास समिति के अधीन मंदिर वर्ष 2016 से चला गया है।